Wednesday, November 17, 2010

सोचते होगे के याद आते

सोचते होगे के
याद आते हो मुझे तुम
गलत हो तुम
हमेशा की तरह


मैं उनमें से नहीं
के यादों की गठरी
साथ बाँध  टहलू.



गुज़रे को भूल
वर्तमान को जीती हूई
भविष्य का निर्माण
आदत है मेरी.  



कल एक कॉमन फ्रेंड
से मुलाकात हुई
उसके साथ मिल
तुम्हारी बुराई में
पूरा दिन गुज़ारा. 



शब् तक झगड़ पड़ी उससे
तुम्हारी  बुराई में ....
मुझसे ज्यादा पार्टीसिपेट किया उसने.
मुझसे ज्यादा कोई बुरा कहे तुम्हे .....
ये बर्दाश्त नहीं मुझे.



भले ही तुमने ना दिया हो
भले ही मैंने ना लिया हो
" हक"
कुछ कहने- सुनने का.



अब कोई खुशफहमी मत पलना
यहीं
कि तुम मुझे याद आते हो.



इतना तो याद ही होगा
कि एक्सपायरी डेट की दवा
नहीं रखती मैं मेडिकल बॉक्स में.



जैसे मुझे याद हैं -
टेलकम पावडर
डाल -डाल कर तुम्हारा
जुराबे पहनना



सुधरे तो होंगे नहीं तुम
याद बिल्कुल नहीं आते मुझे तुम.


प्रियाजी ने लिखा शायद मेरे जैसे और लोगो के लिए


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